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संधान / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
- इस बीच
- जीये किस तरह —
- हम ही जानते हैं !
- कितना भयावह था
- लहरता-उफ़नता-टूटता
- सैलाब —
- हम ही जानते हैं !
- इस बीच
- अर्थ
- जीवन का जगत् का
- गूढ़ था जो आज तक
- अब हम
- उसे अच्छी तरह से
- हाँ,
- बहुत अच्छी तरह से
- जानते हैं !
- अर्थ
- असंख्य परतों को लपेटे
- आदमी
- अब पारदर्शी है,
- भीतर और बाहर से
- उसे हम
- सही,
- बिलकुल सही
- पहचानते हैं !
- असंख्य परतों को लपेटे
- आओ, तुम्हें —
- हाँफ़ते,
- दम तोड़ते
- तूफ़ान की गाथा सुनाएँ !
- जलती ज़िन्दगी से जूझते
- इंसान की गाथा सुनाएँ !
- आओ, तुम्हें —