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आखिरी बुज़ुर्ग / कविता भट्ट
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17:10, 27 सितम्बर 2019
बिन किसी अनुबंध ही ।
-०-
'''20-क़ैद की गई नदी'''
ओ स्ट्रीट लाइट!
अपनी रोशनी पर-
इतना मत अकड़;
क्योंकि , मैं उस नदी के गाँव से हूँ;
जो तुझे रोशन करने की खातिर-
क़ैद कर दी गई-
सीमेंट की दीवारों में
और उसने उफ्फ तक नहीं की।
</Poem>
वीरबाला
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