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06:39, 9 दिसम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=एस. मनोज
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<poem>
ए मेरे पापा इतना करें करम
आने दें इस धरा पे, न जीवन करें खत्म
ए मेरे पापा ...
हसरत है ये दिल में देखूं धरा गगन
झूमू वन में ऐसी अल्हड़ बने पवन
छू ले नभ को बेटी ऐसा करें जतन
ए मेरे पापा ...
संतति हैं बराबर इसका तो भान हो
करती हैं जग को रौशन इतना भी ज्ञान हो
कुम्हलाएं अब ना बेटी ऐसा करें धरम
ए मेरे पापा....
बेटी के ही दम पर सृष्टि है चल रही
बेटी में ही कल की ख्वाहिश है पल रही
ख्वाबें बने हकीकत ले लें यही कसम है
ए मेरे पापा...
</poem>