भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर }} <poem> प...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
पवन के साथ भर कर डग
करो पूरा असीमित मग
दिखो वरदान-से दीपित
दिशाएँ हो सकल ज्योतित,
:सबेरा आ, सबेरा आ !
बसेरा अब नहीं तेरा
उठा अपना सभी डेरा,
किरण-भय से बिना स्वर कर
अभी उलटे चरण धर कर
:अँधेरा जा, अँधेरा जा !
1944
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
पवन के साथ भर कर डग
करो पूरा असीमित मग
दिखो वरदान-से दीपित
दिशाएँ हो सकल ज्योतित,
:सबेरा आ, सबेरा आ !
बसेरा अब नहीं तेरा
उठा अपना सभी डेरा,
किरण-भय से बिना स्वर कर
अभी उलटे चरण धर कर
:अँधेरा जा, अँधेरा जा !
1944
Anonymous user