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प्रात / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
पवन के साथ भर कर डग
करो पूरा असीमित मग
दिखो वरदान-से दीपित
दिशाएँ हो सकल ज्योतित,
सबेरा आ, सबेरा आ !
बसेरा अब नहीं तेरा
उठा अपना सभी डेरा,
किरण-भय से बिना स्वर कर
अभी उलटे चरण धर कर
अँधेरा जा, अँधेरा जा !
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