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New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर }} <poem> ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
::बंधनों में, हार में रोना नहीं, रोना नहीं !
:राह है यह ज़िन्दगी की एक पल रुकना न होगा,
:देख सीमाहीन पथ को बीच में थकना न होगा,
:ज्वार उठता हो उदधि में, मृत्यु-मुख में प्राण जाएँ,
:गाज गिरती हो अवनि पर या दहलती हों दिशाएँ,
::पर, हृदय-साहस कभी खोना नहीं, खोना नहीं !
:हो अँधेरी रात चाहे, घोर गर्जन हो प्रलय का,
:घेर ले झंझा भयानक, नृत्य हो चाहे अनय का,
:मानकर चलना कि साथी हैं सभी झोंके भयंकर
:ले चलेंगे पार फर-फर व्योम-पथ से जो उड़ा कर,
::एक पल भी भय-ग्रसित होना नहीं, होना नहीं !
1949
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
::बंधनों में, हार में रोना नहीं, रोना नहीं !
:राह है यह ज़िन्दगी की एक पल रुकना न होगा,
:देख सीमाहीन पथ को बीच में थकना न होगा,
:ज्वार उठता हो उदधि में, मृत्यु-मुख में प्राण जाएँ,
:गाज गिरती हो अवनि पर या दहलती हों दिशाएँ,
::पर, हृदय-साहस कभी खोना नहीं, खोना नहीं !
:हो अँधेरी रात चाहे, घोर गर्जन हो प्रलय का,
:घेर ले झंझा भयानक, नृत्य हो चाहे अनय का,
:मानकर चलना कि साथी हैं सभी झोंके भयंकर
:ले चलेंगे पार फर-फर व्योम-पथ से जो उड़ा कर,
::एक पल भी भय-ग्रसित होना नहीं, होना नहीं !
1949
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