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मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र।
मैं पात रहित, मैं पुष्प रहित मैं सुख से वंचित औ विस्मृत। मैं हूँ जैसे पीड़ा का घर - मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र। घर।
मैं शरण वेदना की पाकर चुपचाप हो चुका, चिल्लाकर। मैं टूट-टूट कर गया बिखर - मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र। बिखर।
ठहरा-सा यह मेरा जीवन अब अश्रु-रिक्त हैं मेरे हो चुके नयन। लेकिन कल्पित अब भी हैं स्वर - मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र। स्वर।
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