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मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र / राहुल शिवाय

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मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र।

मैं पात रहित, मैं पुष्प रहित
मैं सुख से वंचित औ विस्मृत।
मैं हूँ जैसे पीड़ा का घर।

मैं शरण वेदना की पाकर
चुपचाप हो चुका, चिल्लाकर।
मैं टूट-टूट कर गया बिखर।

ठहरा - सा यह मेरा जीवन
अब अश्रु-रिक्त हो चुके नयन।
लेकिन कल्पित अब भी हैं स्वर।