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{{KKRachna
|रचनाकार=कुसुम ख़ुशबू
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<poem>
तेरे मेरे दरम्यां जो राज़ है
वो हमारे प्यार का आग़ाज़ है

हम वफ़ा का इम्तिहां लेते नहीं
ये हमारा मुनफ़रिद अंदाज़ है

वुसअतें अपनी बढ़ा ले ऐ फ़लक
ये हमारी आख़िरी परवाज़ है

ज़ख़्म तूने वो दिए कि क्या कहें
ऐ महब्बत! फिर भी तुझ पर नाज़ है

हर नफ़स रहता है तेरा इंतज़ार
ख़ुदकुशी का ये अजब अंदाज़ है

तुम गए तासीर लफ़्ज़ों से गई
हां ! उसी दिन से ग़ज़ल नासाज़ है

है शनासाई भी तुझसे ज़िंदगी
फिर भी तू इक कशमकश है राज़ है
</poem>
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