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|रचनाकार=मोहित नेगी मुंतज़िर
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<poem>
जब हमें तुम याद आये रात भर
आंसुओं ने ग़म बहाये रात भर।

ख़्वाब कितने ही सजाये रात भर
जिनको चाहा वो न आये रात भर।

एक सूरज ढल गया जब शाम को
चांद तारे मुस्कुराये रात भर।

कल मुझे इक फूल पन्नों में मिला
दिन पुराने याद आये रात भर।

जिनके प्रियतम दूर थे परदेस में
चांदनी ने दिल जलाये रात भर।

कहते हैं जो किस्मतों का खेल है
ख़्वाब उनको क्यों जगाये रात भर।

</poem>
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