भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब हमें तुम याद आये रात भर / मोहित नेगी मुंतज़िर
Kavita Kosh से
जब हमें तुम याद आये रात भर
आंसुओं ने ग़म बहाये रात भर।
ख़्वाब कितने ही सजाये रात भर
जिनको चाहा वो न आये रात भर।
एक सूरज ढल गया जब शाम को
चांद तारे मुस्कुराये रात भर।
कल मुझे इक फूल पन्नों में मिला
दिन पुराने याद आये रात भर।
जिनके प्रियतम दूर थे परदेस में
चांदनी ने दिल जलाये रात भर।
कहते हैं जो किस्मतों का खेल है
ख़्वाब उनको क्यों जगाये रात भर।