622 bytes added,
14:24, 6 मार्च 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKataa}}
<poem>
तुम्हारी जीत हो जाये हमारी हार हो जाये
संभल कर रह मेरे दिल तू कहीं फिर प्यार हो जाये
यही बस सोचकर दिन भर खड़ा रहता हूँ राहों में
अभी घर से वो निकलेगी हमें दीदार हो जाये।
</poem>