भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारी जीत हो जाये / अभिषेक कुमार अम्बर
Kavita Kosh से
तुम्हारी जीत हो जाये हमारी हार हो जाये
संभल कर रह मेरे दिल तू कहीं फिर प्यार हो जाये
यही बस सोचकर दिन भर खड़ा रहता हूँ राहों में
अभी घर से वो निकलेगी हमें दीदार हो जाये।