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कुछ नई आवाज़ें पुराने कब्रिस्तान से / नोमान शौक़
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{{KKRachna
|रचनाकार=नोमान शौक़
}}
मक्खी की तरह पड़ी है<br />
आपकी चाय की प्याली में<br />
कब तक सुनते रहेंगे हम<br />
इतिहास के झूठे खंडहरों में<br />
अपनी ही चीत्कार की
अनुगूंज
अनुगूँज
<br />
आप<br />
अनिल जनविजय
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