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{{KKRachna
|रचनाकार= सुधा गुप्ता
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<poem>
'''तलाश : सुख की'''

भीड़
आपाधापी
और
गहमागहमी
भरे बाज़ार में
तलाशते रहे
सभी
अपने-अपने सुख ।
टकराते रहे
एक -दूसरे को धकियाते रहे
और ख़रीदते रहे
चाव से भर-भरकर,
खूबसूरत मुखौटों में छिपे
दु:ख ।
-0-
'''सिर्फ़ एक तुम'''

उदासी में डूबी सुबह
उदासी में भीगी शाम
दिन
रात
हर पहर
हर पल
उदासी का जाम,
ज़िन्दगी की बाँसुरी पर
सिर्फ़ एक धुन
बजती है
एऽऽ क
तेरा
नाम !
-0-
'''दो पल'''

कहाँ-कहाँ हो आया मन
दो पल में,
क्या -क्या पा,
खो आया मन
दो पल में !
-0-
'''इन्तज़ार'''

इन्तज़ार …
पलकों पर काँपते
आँसुओं की बनदनवार
कि
पुतली की रोशनी में
झिलमिलाते
दियों की क़तार----
</poem>