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{{KKRachna
|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
}}
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<poem>
थे म्हारी निजरां मांय
घणा मीठा अर अणमोल हो
जिनगाणी मांगो
मना नीं करूं
थे सांसां री सौरम
साच कैवूं...
थांरो हुवणौ ईज
म्हारो हुवणो है
कदै-कदैई तो सोचूं
जे थे नहीं होंवता
तो म्हारै हुवण रो कांई मोल हो!
</poem>
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