भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सांसां री सौरम / इरशाद अज़ीज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थे म्हारी निजरां मांय
घणा मीठा अर अणमोल हो
जिनगाणी मांगो
मना नीं करूं
थे सांसां री सौरम
साच कैवूं...
थांरो हुवणौ ईज
म्हारो हुवणो है
कदै-कदैई तो सोचूं
जे थे नहीं होंवता
तो म्हारै हुवण रो कांई मोल हो!