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{{KKRachna
|रचनाकार= इरशाद अज़ीज़
|अनुवादक=
|संग्रह= मन रो सरणाटो / इरशाद अज़ीज़
}}
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<poem>
बैठ्या मटका करो
मारो सबड़का
रगत रो पसीनो
बो ईज कर सकै
जिको आपरै
बूतै खड़ो होवै
जिनगाणी री बारखड़ी
जे सीख जावै
उणनैं मूंडो ताकण री
कांई दरकार
निसांसां न्हांखतो
चालणियो
कीं नीं कर सकै
म्हैं जाणूं हूं
दाळ में काळो है
पण काळै नैं
धोळो बणावण रो
जतन तो आपां नै ईज
करणो पड़सी म्हारा भायला।
</poem>
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