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दाळ में काळो / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
बैठ्या मटका करो
मारो सबड़का
रगत रो पसीनो
बो ईज कर सकै
जिको आपरै
बूतै खड़ो होवै
जिनगाणी री बारखड़ी
जे सीख जावै
उणनैं मूंडो ताकण री
कांई दरकार
निसांसां न्हांखतो
चालणियो
कीं नीं कर सकै
म्हैं जाणूं हूं
दाळ में काळो है
पण काळै नैं
धोळो बणावण रो
जतन तो आपां नै ईज
करणो पड़सी म्हारा भायला।