1,086 bytes added,
00:56, 30 जून 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुमने कहा-
मुझे तुमसे अथाह प्रेम है!
मैंने कहा-
तुम्हें यह प्रेम मुझसे है या स्वयं से !
निःशब्द थे तुम, किन्तु दृढ़;
हाथ थामकर चले कुछ पग हम।
अंकुरित हुई कामनाएँ हमारी,
फसल पर ओलावृष्टि सी युग दृष्टि
हम विवश कृषक ही तो हैं ना प्रिय!
मनोयोग से चुनते हैं- ओलों के मोती।
प्रयास है- इन मोतियों के हार पिरोने का।
मुझे पता है, यह दुस्साहस है।
और तुम कहते हो- यही तो है अथाह प्रेम!
<poem>