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अंकुरित हुई कामनाएँ / कविता भट्ट

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तुमने कहा-
मुझे तुमसे अथाह प्रेम है!
मैंने कहा-
तुम्हें यह प्रेम मुझसे है या स्वयं से  !
निःशब्द थे तुम, किन्तु दृढ़;
हाथ थामकर चले कुछ पग हम।
अंकुरित हुई कामनाएँ हमारी,
फसल पर ओलावृष्टि सी युग दृष्टि
हम विवश कृषक ही तो हैं ना प्रिय!
मनोयोग से चुनते हैं- ओलों के मोती।
प्रयास है- इन मोतियों के हार पिरोने का।
मुझे पता है, यह दुस्साहस है।
और तुम कहते हो- यही तो है अथाह प्रेम!