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{{KKRachna
|रचनाकार=महादेवी वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा
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<poem>शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी!<br><br>
अर्चना हों शूल भोले,<br>क्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले,<br><br>
आज करुणा-स्नात उजला<br>दु:ख हो मेरा पुजारी!<br><br>
नूपुरों का मूक छूना,<br>सरद कर दे विश्व सूना,<br>यह अगम आकाश उतरे<br>कम्पनी का हो भिखारी!<br>लोल तारक भी अचंचल,<br>चल न मेरी एक कुन्तल,<br>अचल रोमों में समाई<br>मुग्ध हो गति आज सारी!<br><br>
राग मद की दूर लाली,<br>साध भी इसमें न पाली,<br>शून्य चितवन में बसेगी<br>मूक हो गाथा तुम्हारी!<br><br/poem>