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शून्य मन्दिर में बनूँगी / महादेवी वर्मा

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शून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी!

अर्चना हों शूल भोले,
क्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले,

आज करुणा-स्नात उजला
दु:ख हो मेरा पुजारी!

नूपुरों का मूक छूना,
सरद कर दे विश्व सूना,
यह अगम आकाश उतरे
कम्पनी का हो भिखारी!
लोल तारक भी अचंचल,
चल न मेरी एक कुन्तल,
अचल रोमों में समाई
मुग्ध हो गति आज सारी!

राग मद की दूर लाली,
साध भी इसमें न पाली,
शून्य चितवन में बसेगी
मूक हो गाथा तुम्हारी!