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11:24, 15 जुलाई 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|संग्रह=मन के कागज़ पर / कविता भट्ट
}}
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<poem>
'''अंध-श्रद्धा प्रेम मेरा, कुछ नेह बरसाते रहो।'''
जेठ-सा जीवन तपा, मधुमास तुम आते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
'''विकल है- मन की नदी, सागर बहुत ही दूर है।'''
नम पलकों से राह के, काँकर हटाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
'''जग में सच्चा प्यार नहीं, कोई ऐसा न कहे।'''
आशा ओढ़, कल्पना के संग सुर मिलाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
'''घर ये तेरा, ना है मेरा, वृथा वाद-विवाद है।'''
चार दिन ही साथ हैं- प्रेमपथ पग बढ़ाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
'''ओढ़कर बैठे हो काहे, तुम दुशाले पर दुशाले?'''
कुटिल काल मु्सका रहा, अब अहं मिटाते रहो।
'''मधुमास तुम आते रहो.. '''
</poem>