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अंध-श्रद्धा प्रेम मेरा / कविता भट्ट

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अंध-श्रद्धा प्रेम मेरा, कुछ नेह बरसाते रहो।
जेठ-सा जीवन तपा, मधुमास तुम आते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
विकल है- मन की नदी, सागर बहुत ही दूर है।
नम पलकों से राह के, काँकर हटाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
जग में सच्चा प्यार नहीं, कोई ऐसा न कहे।
आशा ओढ़, कल्पना के संग सुर मिलाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
घर ये तेरा, ना है मेरा, वृथा वाद-विवाद है।
चार दिन ही साथ हैं- प्रेमपथ पग बढ़ाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो...
ओढ़कर बैठे हो काहे, तुम दुशाले पर दुशाले?
कुटिल काल मु्सका रहा, अब अहं मिटाते रहो।
मधुमास तुम आते रहो..