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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
हम कहकशां की हद से भी आगे निकल गये
डूबे कभी जो अपने ख़यालों के ग़ार में
जितने पड़ाव राह में आये फिसल गये
हम कहकशां की हद से भी आगे निकल गये
कितने हसीन ख़्वाब हक़ीक़त में ढल गये
नश्शे को ज़िन्दगी मिली गोया ख़ुमार में
हम कहकशां की हद से भी आगे निकल गये
डूबे कभी जो अपने ख़यालों के ग़ार में।
</poem>
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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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हम कहकशां की हद से भी आगे निकल गये
डूबे कभी जो अपने ख़यालों के ग़ार में
जितने पड़ाव राह में आये फिसल गये
हम कहकशां की हद से भी आगे निकल गये
कितने हसीन ख़्वाब हक़ीक़त में ढल गये
नश्शे को ज़िन्दगी मिली गोया ख़ुमार में
हम कहकशां की हद से भी आगे निकल गये
डूबे कभी जो अपने ख़यालों के ग़ार में।
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