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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
रास कब आयेगा पत्तों पे सोना ओस का
इक हवा जागी कि सब ज़ेरो-ज़बर हो जाएगा

यूँ तो शायद कुछ नहीं होना न होना ओस का
रास कब आयेगा पत्तों पे सोना ओस का
चाहे कितना दिल-नशीं है ये बिछौना ओस का

देखते ही देखते मंज़र पे सब खो जायेगा

रास कब आयेगा पत्तों पे सोना ओस का
इक हवा जागी कि सब ज़ेरो-ज़बर हो जाएगा।
</poem>
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