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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
रूई का इक पहाड़ है या तोंदा बर्फ का
वो अब्र-पारा दोशे-हवा पर तुला हुआ

ये कौन इम्तिहान है नज़रों के ज़र्फ़ का
भूली हुई शिनाख्त की परछाइयों में गुम
फिक्रो-नज़र में बंट गया इज़हार हर्फ़ का

इमकानो-आगही का है दफ़्तर खुला हुआ

रूई का इक पहाड़ है या तोंदा बर्फ का
वो अब्र-पारा दोशे-हवा पर तुला हुआ।
</poem>
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