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06:23, 17 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बर्फ़ हो गई
हथेलियों को
रगड़ते निकला
वह मन्दिर से –
याचना का
यह प्रतिसाद
कि मुट्ठी में ज़मा
गरमी को
खोकर आया..!
</poem>
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