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|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
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|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
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<poem>
कभी नहीं हो सकती वह
मात्र एक कलाकृति

नहीं हो सकती वह
एक पैंटिंग
एक मूर्ति
एक म्यूराल
या एक कविता मात्र

भले ही
नाप आए वह
दुनिया के
सारे समन्दरों को

यूरोप और अमेरिका भी
चाहे हो जाएँ
लट्टू
उसके ज्ञान, सौन्दर्य और यौवन पर

पुरस्कारों के ढेर
भले ही
दें उसे आश्वासन
अमरता का

जब तक
उसके पोर-पोर में
रची रहेगी
सोलह आने भारतीयता

जब तक
लिखती रहेंगी
उसकी अँगुलियाँ
कथाएँ
इस मिट्टी की

नहीं हो सकती वह
मात्र एक कलाकृति...
कभी नहीं !
</poem>
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