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<poem>
आँखों की मनमानी को ख़ामोश रखा
मैंने बहते पानी को ख़ामोश रखा

जाने क्या क्या और देखना था बाक़ी
आँखों ने हैरानी को ख़ामोश रखा

क़िस्मत ने बचपन इतना बदरंग किया
बच्चों ने नादानी को ख़ामोश रखा

रिश्ते के मरते जाने की हद थी ये
बातों ने भी मानी को ख़ामोश रखा

दीवारों ने शोर किया वीरानी का
खिड़की ने वीरानी को ख़ामोश रखा
</poem>
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