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05:55, 5 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अंबर खरबंदा
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|संग्रह=
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<poem>
यही इक जुर्म है ऐ मेरे हमदम
के मैं खुशबू को खुशबू बोलता हूँ
तेरी आँखों को देखा था किसी दिन
उसी दिन से मैं उर्दू बोलता हूँ
</poem>