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नीरवता में / इंदिरा शर्मा

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<poem>
मायावी रात का वह क्षण
वह अनुभूति
वह तारों का खिलखिलाना
फिर अनंत ब्रह्माण्ड की कालिमा में दूब जाना |
वह नित – नित नूतन चिर सत्य
जो केवल मैंने जाना
उस अद्भुत नीरवता में
तुम्हें पाना
फिर सहसा
टूटते तारे सा तुम्हारा खो जाना
दूर –
आकाश के पार अनचीन्हा , अनपहचाना |
पुन: मुझे
इंगित कर बुलाना
हौले से मुस्कुराना
मन के किसी कोने में चुपके से झाँक जाना
यही तो मैंने जीवन भर जाना |
मायावी रात का वह क्षण
वह अनुभूति
वह तारों का खिलखिलाना
रात्रि की निस्तब्धता
और मेरा गुनगुनाना
क्या तुमने पहचाना |
मायावी रात का वह क्षण
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