551 bytes added,
05:07, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
हूँ ला-महदूद मेरी हद कुछ भी नहीं
ला-रेब हूँ, गो ऐन सनद कुछ भी नहीं
इंसान लकीरों में भी है ला-महदूद
देखें तो अज़ल और अबद कुछ भी नहीं।
</poem>