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05:14, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
सूरज की तमाज़त को तो सब देखते हैं
क्या उसकी हक़ीक़त है ये कब देखते हैं
रह जाती हैं आंखें खीरा होकर
आईना कभी धूप में जब देखते हैं।
</poem>