सूरज की तमाज़त को तो सब देखते हैं
क्या उसकी हक़ीक़त है ये कब देखते हैं
रह जाती हैं आंखें खीरा होकर
आईना कभी धूप में जब देखते हैं।
सूरज की तमाज़त को तो सब देखते हैं
क्या उसकी हक़ीक़त है ये कब देखते हैं
रह जाती हैं आंखें खीरा होकर
आईना कभी धूप में जब देखते हैं।