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05:23, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
अहसास हुआ है वही जामिद बे-कैफ़
उस पर भी फ़ज़ा है वही जामिद बे-कैफ़
फिर ज़र्द हुआ जाता है बर्गे-तख़लीक़
फिर आज नवा है वही जामिद बे-क़ैफ़।
</poem>