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05:32, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
भगवान है कण कण में तो मूरत क्या है
मूरत की परस्तिश की ज़रूरत क्या है
मूरत भी तो कण कण से बनी है, तो फिर
मूरत की परस्तिश में कदूरत क्या है।
</poem>