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1{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग्रह= }}[[Category:हाइकु]]<poem> 45
तुम छाया हो
जीवन की धूप में
मन, काया हो।
247
शीत भीषण
काँप जब वजूद,
तुम हो धूप।
347
मिटता वैभव
जर्जर होती काया
प्यार न मिटे।
448
एक छुअन
हौले लिया चुम्बन
प्राण जगाए।
549
कितना दिया !
पिलाया मधुरस!
जाने ये हिया।
650
देती है ऊर्जा
तेरी वे प्रार्थनाएँ
गले लगाएँ।
751
शब्दों में रस
दृष्टि में मधु स्पर्श
तुझसे पाया।
-0-</poem>