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Kavita Kosh से
तुम छाया हो
जीवन की धूप में
मन, काया हो।
शीत भीषण
काँप जब वजूद,
तुम हो धूप।
मिटता वैभव
जर्जर होती काया
प्यार न मिटे।
एक छुअन
हौले लिया चुम्बन
प्राण जगाए।
कितना दिया !
पिलाया मधुरस!
जाने ये हिया।
देती है ऊर्जा
तेरी वे प्रार्थनाएँ
गले लगाएँ।
शब्दों में रस
दृष्टि में मधु स्पर्श
तुझसे पाया।