भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गले लगाएँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
45
तुम छाया हो
जीवन की धूप में
मन, काया हो।
47
शीत भीषण
काँपे जब वजूद,
तुम हो धूप।
47
मिटता वैभव
जर्जर होती काया
प्यार न मिटे।
48
एक छुअन
हौले लिया चुम्बन
प्राण जगाए।
49
कितना दिया !
पिलाया मधुरस!
जाने ये हिया।
50
देती है ऊर्जा
तेरी वे प्रार्थनाएँ
गले लगाएँ।
51
शब्दों में रस
दृष्टि में मधु स्पर्श
तुझसे पाया।