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{{KKRachna
|रचनाकार=नकुल गौतम
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
झील में बर्फ़ ने छुआ पानी
शर्म से काँपने लगा पानी
प्यास पहले भी कम न थी लेकिन,
अब के सर से गुज़र गया पानी
देख पाये न हम नदी सूखी
हमनेे पत्थर पे लिख दिया पानी
एक शातिर दिमाग़ बादल ने
खेत के कान में कहा पानी
उसकी आंखों पे था यकीं हमको,
चाँद पर ढूंढ ही लिया पानी
रूह ने लिख दिये वसीअत में
आग, अम्बर, ज़मीं, हवा, पानी
घूम आओ नकुल पहाड़ों पर
जाओ बदलो ज़रा हवा पानी
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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झील में बर्फ़ ने छुआ पानी
शर्म से काँपने लगा पानी
प्यास पहले भी कम न थी लेकिन,
अब के सर से गुज़र गया पानी
देख पाये न हम नदी सूखी
हमनेे पत्थर पे लिख दिया पानी
एक शातिर दिमाग़ बादल ने
खेत के कान में कहा पानी
उसकी आंखों पे था यकीं हमको,
चाँद पर ढूंढ ही लिया पानी
रूह ने लिख दिये वसीअत में
आग, अम्बर, ज़मीं, हवा, पानी
घूम आओ नकुल पहाड़ों पर
जाओ बदलो ज़रा हवा पानी
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