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{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|संग्रह=
}}
[[Category:हाइकु]]
<poem>
11
नैनों की झील
पी गए जो अधर,
बुझी है तृष्णा।
12
आओ तो कभी
जगाओ सोई झील
काँपें तरंगें।
13
निर्जन वन
प्रतीक्षारत झील
तट हैं मौन ।
14
झील पावन
कर गया विषैला
किसी का मन ।
15
झील -दर्पण
तिरते नील घन
केश सँवारें
16
बैठ किनारे
किसने पढ़ा भला
झील का मन !
17
'''ओक भरके'''
'''पिया निर्मल नीर'''
'''लजाई झील ।'''
18
झंकृत हुए
मन-प्राण झील के
होठों से छुआ।
19
डबडबाए
झील-से भीगे नैन
नींद ले उड़े।
20
झील में झाँका
अश्रुजल टपके
सिसकी उठी।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|संग्रह=
}}
[[Category:हाइकु]]
<poem>
11
नैनों की झील
पी गए जो अधर,
बुझी है तृष्णा।
12
आओ तो कभी
जगाओ सोई झील
काँपें तरंगें।
13
निर्जन वन
प्रतीक्षारत झील
तट हैं मौन ।
14
झील पावन
कर गया विषैला
किसी का मन ।
15
झील -दर्पण
तिरते नील घन
केश सँवारें
16
बैठ किनारे
किसने पढ़ा भला
झील का मन !
17
'''ओक भरके'''
'''पिया निर्मल नीर'''
'''लजाई झील ।'''
18
झंकृत हुए
मन-प्राण झील के
होठों से छुआ।
19
डबडबाए
झील-से भीगे नैन
नींद ले उड़े।
20
झील में झाँका
अश्रुजल टपके
सिसकी उठी।
</poem>