643 bytes added,
18:25, 30 मार्च 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता भट्ट
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
उसकी चुप्पी-
मेरे भीतर
उतर आई हो कहीं जैसे;
करने को आतुर हों
अनन्त यात्रा मेरी आत्मा तक
उसकी आँखें यों देख रही हैं एकटक मुझे
भीतर से भीतर तक,
''''''अभी तो स्पर्श भी न किया'''
फिर ये कैसा जादू है।'''
</poem>