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उसकी चुप्पी / कविता भट्ट
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					उसकी चुप्पी-
मेरे भीतर 
उतर आई हो कहीं जैसे; 
करने को आतुर हों 
अनन्त यात्रा मेरी आत्मा तक
उसकी आँखें यों देख रही हैं एकटक मुझे 
भीतर से भीतर तक,
'अभी तो स्पर्श भी न किया
फिर ये कैसा जादू है।
	
	