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{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|अनुवादक=
|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>
नदी के मस्त धारे जानते हैं
 समंदर के इशारे जानते हैं  
सहारा कौन दे सकता है उनको
 ये अक्सर बेसहारे जानते हैं  
धरा से उनकी बेहद दूरियाँ हैं
 गगन के चाँद—तारे जानते हैं  
किसी बिरहन ने कितनी बार खोले
 ये उसके घर के द्वारे जानते हैं  
हमारी ख़ूबियों और ख़ामियों को
 हमारे दोस्त सारे जानते हैं  
चला समवेत स्वर में उनका जादू
 ये हर दल—बल के नारे जानते हैं  
धरम का अर्थ ‘गुरू’ के बाद केवल
 
निकटतम ‘पंच—प्यारे’ जानते हैं
</poem>
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