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नदी के मस्त धारे जानते हैं / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
नदी के मस्त धारे जानते हैं
समंदर के इशारे जानते हैं
सहारा कौन दे सकता है उनको
ये अक्सर बेसहारे जानते हैं
धरा से उनकी बेहद दूरियाँ हैं
गगन के चाँद—तारे जानते हैं
किसी बिरहन ने कितनी बार खोले
ये उसके घर के द्वारे जानते हैं
हमारी ख़ूबियों और ख़ामियों को
हमारे दोस्त सारे जानते हैं
चला समवेत स्वर में उनका जादू
ये हर दल—बल के नारे जानते हैं
धरम का अर्थ ‘गुरू’ के बाद केवल
निकटतम ‘पंच—प्यारे’ जानते हैं