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{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|अनुवादक=
|संग्रह=भीड़ में सबसे अलग / जहीर कुरैशी
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[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>
पहले मन फिर वचन बिक गया
व्यक्ति का मूलधन बिक गया
व्यक्ति का मूलधन बिक गया   देह के गर्म बाज़ार में हर कली, हर सुमन बिक गया   रक्षकों को खबर ही नहीं
रक्षकों को खबर ही नहीं
और चुपके से वन बिक गया
 'द्रौपदी' नग्न होने को है इस सदी का किशन बिक गया  
उसका बस एक ही स्वपन था
अंतत: वो स्वपन बिक गया
अंतत: वो स्वपन बिक गया   डगमगाने लगी है तुला न्याय का संतुलन बिक गया   'सैटेलाइट' के आदेश पर—
'सैटेलाइट' के आदेश पर
इस धरा का गगन बिक गया
</poem>
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