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<poem>
महकी-महकी बारिश हो, तू हो, थोड़ी तन्हाई हो
छोटी-छोटी ख़्वाहिश हो, ख़्वाबों ने ली अंगड़ाई हो

सूखे-सूखे से फूलों की ख़ुशबू में मन डूबा हो
क़तरा-क़तरा यादें हों, पर दरिया की गहराई हो

रेगिस्तानी आँखों में कुछ भीगे-भीगे लम्हें हों
आवारा मन की गलियों में बस तेरी तन्हाईहो

लम्बा रस्ता, मुश्किल मंज़िल, धुंधली-धुंधली राहें हों
ऐसा पागलपन हो, मैं हूँ, पर तेरी परछाई हो

काला बादल इस धरती पर , बरसे तो इतना बरसे
तू ही तू हो चारो सू और, यादों की शहनाई हो
</poem>