1,301 bytes added,
04:25, 23 जुलाई 2021 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
महकी-महकी बारिश हो, तू हो, थोड़ी तन्हाई हो
छोटी-छोटी ख़्वाहिश हो, ख़्वाबों ने ली अंगड़ाई हो
सूखे-सूखे से फूलों की ख़ुशबू में मन डूबा हो
क़तरा-क़तरा यादें हों, पर दरिया की गहराई हो
रेगिस्तानी आँखों में कुछ भीगे-भीगे लम्हें हों
आवारा मन की गलियों में बस तेरी तन्हाईहो
लम्बा रस्ता, मुश्किल मंज़िल, धुंधली-धुंधली राहें हों
ऐसा पागलपन हो, मैं हूँ, पर तेरी परछाई हो
काला बादल इस धरती पर , बरसे तो इतना बरसे
तू ही तू हो चारो सू और, यादों की शहनाई हो
</poem>