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सीमाओं की आँखें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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07:49, 26 जुलाई 2021
खिल उठता है अपना मन।
झड़ी गोलियों की लगती
हमे प्यारा मधुमास
है
।
अँधड़ शीश झुकाते हैं
कुचल उन्हें बढ़ जाते हैं
वीरबाला
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