भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीमाओं की आँखें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

आगे ही ये बढ़े कदम
पर्वत पर भी चढ़े कदम
नाप दिया है सागर को
चट्टानों पर चढ़े कदम ।
हर कदम की अमिट निशानी
बन जाती इतिहास है ।
करती तोंपें घन-गर्जन
थर्रा उठता नील गगन
रणभेरी की लय सुनकर
खिल उठता है अपना मन।
झड़ी गोलियों की लगती
हमे प्यारा मधुमास है ।
अँधड़ शीश झुकाते हैं
कुचल उन्हें बढ़ जाते हैं
मिट्टी में मिल जाते वे
जो हमसे टकराते हैं ।
सीमाओं की आँखें हम
यही अपना विश्वास है ।